GUDDU MUNERI

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ताला चाबी


[ ताला चाबी  ] 


अजीब बात है न ये मेरी 

मैं लोहे से बनकर आता हूं 


मैं मजबूत सुरक्षा का प्रतीक 

मैं चाबी संग ताला कहलाता हूं ।।


चाबी और मेरा रिश्ता, है ऐसा 

मैं उसमे घुल मिल जाता हूं 


करीब आकर मेरे घूम जाती चाबी 

वैसे ही उपर से मैं खुल जाता हूं ।।


दीवाने भले रात को घर लौटे 

मैं चाबी से जुदा हो जाता हूं 


हर रात मैने अकेले काटी है 

फांसी जैसे फंदे पर मैं सो जाता हूं ।।


मुझे जगाने हर सुबह चाबी आती है 

गले मिलकर मैं फिर जी जाता हूं 


दिन भर रहती मेरे साथ वो चाबी 

रात भर के हालात उससे कह पाता हूं ।।


बस एक मुसाफिर है मालिक मेरा 

उसी के इशारे पर मैं झूल जाता हूं 


कौन जानेगा चाबी और मेरा दर्द 

मैं ताला यू ही पागल हो जाता हूं ।। 


जोखिम भरा है काम मेरा ए लोगो 

माल की हिफाजत में मारा जाता हूं


हर दिन रात रात जागने पर भी 

चोरों के हाथ लगा तो काटा जाता हूं ।।


एक जो है सहारा मेरा जीवन भर का 

मैं उस चाबी से दूर हो जाता हूं 


गुनाह है गर मोहब्बत मेरी चाबी से 

क्यों पाबंदी से बार बार लगाया जाता हूं  ।।


वक्त मिलता तो मिला देते चाबी संग 

नही तो अकेला लटका रह जाता हूं 


एक भूख प्यास सब कुछ मेरी चाबी है 

छोड़ दो उसे मेरे संग इतना कह पाता हूं ।।


मुझ ताले की अजीब कहानी है लिखने वाले 

तू मेरा दर्द लिख मैं कहां लिख पाता हूं 


ताला-चाबी की दास्तां "गुड्डू" अब तुमसे है 

तेरे शब्द मैं ताला आसानी से पढ़ जाता हूं 


     - गुड्डू मुनीरी सिकंदराबादी 

     - दिनांक : ३०/०१/२०२४


आज की प्रतियोगिता हेतु 

विषय : स्वेच्छिक 









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3 Comments

Sushi saxena

14-Feb-2024 06:03 PM

Very nice

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Gunjan Kamal

02-Feb-2024 04:35 PM

👏👌

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Mohammed urooj khan

31-Jan-2024 11:49 AM

शानदार 👌🏾👌🏾👌🏾

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